Monday, April 18, 2016

भूख

                   भूखा मनसुख घर भर में भिन्नाया फिर रहा है , अंधी दादी चिचियाँ रही है उसे दिशा - मैदान की तलब लगी है , अध दिमाग वाली पगली बूआ भी न जाने मोहल्ले के किस बदमाश होटलवाले छोकरे संग आँख मटक्के में खीखी कर हंस रही थी नुक्कड़ पे खड़ी, न उसे घर का ख्याल न बूढी अंधी माँ का होश न भूख से बिलबिलाते मनसुख की चिंता | उस पर जवानी का नशा चर्राया था और उसपे भूख का करेंट  भी भारी था |  मनसुखा माँ को अपनी सिलाई उधड़े मैले चीकट शर्ट के कोने को उठाकर अपना पेट दिखता है, अपने गंदे ,रो - रो कर सूजे मुखड़े पर एक करुणा बिखेर कर कहता है ......" ऐ माई ........दे न कछु  खाने को ........पेट काट रिया हैगा ........दे दे न ........ भगौने मा जे का धर कर लाई है ........दे न तनिक ..........पेट में कछु  काट रिया हैगा " 

​                   माँ कुछ जवाब नहीं देती ......लगी रहती है अपने ही काम में , उसे पता है यह भुक्कड़ हमेशा ही झूठ - मूठ ही  कछु खाने की फरमैसे में ही लगो रहियो , जब भी बे लौटती है काम पर से | पर देवकी यह भी जानती है की पांच बरस कम है बहानो बाजी के लाने , यह उम्र नहीं झूठ - मूठ की भूख जताने की , पर करे भी तो क्या ........अकेली जान और सर पे पांच सर और पांच  पेट का जुगाड़ ............मरा बसेसर जो दिल्ली का रुख किया कमाने के लाने तो लहुट के नहीं मूता अपने खेत - खलिहान की तरफ ...........आज पांच बरस झट पांच माह की तरह सरक गए ............सारे भाई - भतीजे लूट लिए खेत - खलिहान बैंक के कर्जे के नाम पर | बचे रहे पांच सर और पांच पेट और सर छुपाने को मजदूरों की बस्ती का यह घर | घर ही कहेंगे इसे क्यूंकि इसमें घरवाले रहते हैं ..........वरना नगर निगम वाले इसे अन -औथराइज्ड झोपड़ पट्टी ही कहते हैं ....जिसे कभी भी किसी भी वक़्त नेस्तानाबूत किया जा सकता है | 

               " माई ओ माई दे न कछु ..........मनसुख उदास निगाहों से माई को देखता है , देवकी है की जरा सा भी ध्यान नहीं देती मनसुखा की बात पर | और वह अपने ही कामों  में व्यस्त सर से बड़ा सा पतीला उतर कर आँगन के कोने में धरे  बड़े से सिलबट्टे को  जमीन पर बिछा कर बाल्टी के पानी से रगड़ - रगड़ कर धोती है | 
  " माई " कह कर मनसुख उसके गले में गलबहियां डाल झूल सा जाता है ....." का लाई है आज मैडम के घर से , जरा बतलाना .......ऐ माई ..माई , माई ..........माई " |
    " परे हट ........देख सब बगरा जावेगा ......अभी बहुत काम धरा हैगा .........तनिक बाहर खेली आओ , तब तक हम भी निपट जावेंगे फिर तुमको खावे का देंगे |" 
    " बताना माई का धरो हैगा ऐसो बड़ो सो भगौने में "...........मनसुख फिर माई के अगल - बगल झूम उठा | मनसुखा ने  सोचा  की जरूर कोई अच्छी खाने वाली चीज होगी तभी तो माई ने बड़े ही करीने से उस भगौने को ढक - ढुक कर रक्खा है | वह माई के पीठ से झटपट उतर कर भगौने का बड़ा सा ढक्कन बड़े तकलीफ से हटा कर पूछता है ..........
" जे का लाई है माई .........पानी ही पानी दिखो है खाने के लाने कछु नई दिख रहा " और फिर अपना गन्दा हाथ पानी ने डालकर कुछ ढूंढता है .........फिर निराश होकर हाथ की मुट्ठी बना कर ख़ुशी से बाहर निकलता है जैसे उसे जन्नत मिल गई हो ...पर यह क्या ...यह तो दाल है ..........साबुत दाल ........" रो कर कहता है ........माई ...माई इसे मैं कैसो खाऊं जे तो दाल हैगा " | 
" छोड़ - छोड़..... दाल छोड़ ...काहे के लाने ऐसो गंदो - संदो हाथ डाल रिओ है, दाल गन्दी हो रिओ है मैडम को पतो चलेगो तो गुस्सा करेगी और जे काम भी हाथ से जावेगो |" 
" फिर माई मैं का खाऊ " मनसुखा रुआंसा होकर बोला |
" तनिक ठहर जाव मैडम को जे दाल पीस कर दे आऊं , फिर जो भी पेसे मिले उससे चावल दाल हाट से लाकर तेरे को खाने को दूंगी | देवकी की समझ में नहीं आ रहा था की इस पांच बरस के बच्चे से कैसे कहे भूख में सब्र करने को | देवकी को भी पता है जब भूख से पेट की अंतड़ियाँ कुलबुलाती हैं तो कैसे आँखों के आगे अँधेरा छाता है और सब्र हो जाता है काफूर | वह अब भगौने को सिलबट्टे  के नजदीक खींच खुद भी बैठ जाती है और मुट्ठी - मुट्ठी गीली दाल सिल पर धर बट्टे को जोर - जोर से सिल पर घिसने लगती है .....| 
" माई मुझे गीली दाल ही दे .........बड्डे जोर की भूख लगो | " मनसुखा देवकी से आशा कर बैठता है की माई  उसे खाने के लाने  कछु गीली दार जरूर देगी | देवकी भी भीगे मन से मुट्ठी भर गीली दाल मनसुखा के हाथ में धर कर कहती है ......." जा खा .......और खेलने को जा ........तनिक जे काम कर लेन दे , नई तो मैडमजी गुस्साए जाय तब पेसे भी नई मिलेगो और राशन भी खाख ले पाई | दादी , बुआ अलग अलापेंगी भूख राग ...चल - चल परे हट |  
 मनसुख दाल खा कर फिर मचल उठता है .........." ए माई... तनिक और धर न म्हारी मुट्ठी मा ...........जोर की भूक लगो .....बा का हे .....तनिक दे देना माई ............"|
" हट ....परे हट... नई तो देंगे एक लप्पड़ " .........देवकी बिफर उठी और मनसुखा के न हटने पर एक जोर का घूँसा उसके पीठ पर रसीद देती है | और फिर घूंसा खाकर दर्द से मनसुखा बिलबिला उठता है .........ए माई भूक लगो हतो .........फिर बुक्का फाड़ कर रो उठता है | 
रोना सुनकर दादी अँधेरे सीलन भरे कोठरी से ही भिनभिनाती है ...." डायन मार डारिहोऊ का मोड़ा को , भूक्हो है बिचारो तनिको रहम कर ,भूख अच्छे -अच्छोंन को रुआ दे मनसुखा त बालक भवा रोबैगो ही रोबैगो .......बाप इतै नई भवा तो का भवा दादी अभी जिन्दा भई " | देवकी उसे जितना चुपाने को कहती वह उतना ही जोर -जोर से बुक्का फाड़ चिल्ला कर रोता और सारे  आँगन का चक्कर सा लगाता | जितना कहती जई काम लगो हतो ......कभी मोड़ा को चुपायें , कभी सास का पखाना कराएँ तो कभी झकली ननद के सर के जुएँ मारें ...सब धरो हतो म्हारो मूड़ी मा | बसेसर जाने कहाँ मर खप गयो हतो .....अब हम ही बचे रहे मरबे के लाने .......वह बकझकाती रही और मनसुखा का रोना अपने सप्तम सुर पर बजता रहा | देवकी को मनसुखा का रोना असह्य लगने लगा , भूख से तड़पते--बिसूरते  बच्चे का रोना किस माँ का दिन न पिघला दे | देवकी का दिल पसीज गया और वह गीले हाथ को धोती के कोर से पोंछकर " चल गोदी आ " कह कर गोद में उठा लेती है | और उसे गोदी में ले चुपाने की नाकाम कोशिश करती है | अचानक बैंड - बजे की आवाज़ सुनाई देती है ...लगता है मेन रोड पर कोई बारात गुजर रही है , देवकी दरवाजे के छेद से बाहर झांक कर देखती है ..हाँ सचमुच ही बारात आ रही है | यह उनके घर के सामने से ही गुजरेगी | बाजे की आवाज सुनकर मनसुखा थोड़ा चौकन्ना हो चुप हो जाता है | देवकी गोदी में मनसुखा को उठा कर टूटियल दरवाजे को ठेल सड़क पर आ जाती है , शाम गहरा रही थी और इधर बैंड की आवाज़ और तेज़ रौशनी से संकरी सी सड़क जगमगा उठी थी , और साथ साथ उनके टूटे - फूटे घर भी जगमगा उठे थे | बैंड की शोर मचाती धुन पर पूरी सड़क नाच सी रही थी | देवकी ने सोचा चलो मनसुखा को बारात ही दिखा लाऊं हो सकता है मनसुखा का दिल बहल जाये और खाने की ज़िद छोड़ दे | बच्चा बारात के बैंड की तेज़ धुन और रंगबिरंगी रौशनी देख अवाक् हो गया और अपनी पेट की भूख और रोना भूल गया यहाँ तक माँ द्वारा लगे पीठ का घूंसा भी याद नही रहा | 
लेकिन अब मनसुखा नई बात पे मचल उठा बोला " चल न माई तनिक सामने में वहां से बारात अच्छो दिखो है "| देवकी थोडा डरते - डरते आगे बढती है .......बारात अब सामने ही है ........दूल्हा दिख रहा है , जगमग - जगमग शेरवानी और फूलों वाले सेहरे में ..मनसुखा फिर मचलता है ..." ऐ माई .......हम दूल्हा बनी ....बना न हमें दूल्हो "| मनसुखा पैर झटक कर कहता है | 
" चल न माई आगें कूँ ........नई तो खाबे को कछु दे " अबकी मनसुखा की लातें तड़ातड़ भूखी देवकी के पेट पर पड़ रही थी | 
" बे बड़े लोग हैं , बेटा बे लोग सुन्दर - सुन्दर कपड़ो पहिरो हती कहाँ हम दलिद्दर लोग  ....चल घर चल " | देवकी की बड़ी - बड़ी बातें भला बच्चा क्या समझे .....बोली - " इतैं दूर से ही देख लौ ....अन्दर नई घुसिहैं " | 
                   पांच साल के बच्चे के जेहन में ये बातें नहीं समां पाई , अब उसकी जिद उसके पेट की ज्वाला से भी ज्यादा जोर मारने लगी वह  देवकी के बाल गुस्से से नोचने लगा , वह डरती - सहमती अपने मैले -कुचैले कपड़ों को निहारती गोदी में पैबंद लगे कपड़ों से ढके मनसुखा को लिए आगे बढ़ती रही| वह  झिलमिलाती रौशनी में सामने आने से डर रही थी कहीं कोई बारात वाला नाराज न हो जाये और उन्हें गुस्से से धक्का मारकर दूर न खदेड़ दे | पर न जाने किन विचारों से वशीभूत हो उसके कदम बारात के संग - संग उठने लगे | उसने देखा सभी बाराती उन्मत्त हो बैंड  की तेज धुन पर मस्त होकर नाच रहे हैं , उन्होंने जमकर शराब भी पी रक्खी है | कुछ लोगों के हाथों में शराब की कुछ खुली , कुछ अनखुली बोतलें थी जो वे एक दुसरे को पीने के बाद ले - दे रहे थे | और कुछ लोग बारात के किनारे - किनारे रौशनी करने वालों के साथ - साथ कदम मिलते हुए क़तार बद्ध होकर हाथों में बन्दूक लिए चल रहे थे | जिनमे से बीच - बीच में वे लोग फायर भी कर रहे थे | कुछ लोग भीड़ के सामने जाकर आतिश बाजियां छोड़ रहे थे उनकी रौशनी और धमाके की आवाज़ों से मनसुखा डर कर सहम जाता और माँ के सीने से चिमट जाता | फिर आवाजें बंद होने पर प्रफुल्लित होकर दोनों हाथो से ताली बजाकर हंस पड़ता | मनसुखा की ताली की आवाजें और उन बारातियों के ठहाके एक हो जाते | कोई बड़ा न छोटा ............सभी की हंसी मिली जुली | 

                           थोड़ी - थोड़ी देर में बाराती दुल्हे को वार कर नोट बैंड वालों को या फिर रौशनी लेकर चलने वालों के हाथों में धर देते | देवकी के मन में भी एक आस कुलबुलाई ...काश कोई भूल से ही सही नोट उसके भी हाथ पर धर दे | मनसुख ने फिर मचल कर देवकी के पेट पर जोर की लात मारी अब जिद थी गोद से उतरने की | देवकी भी अब थक चुकी थी वह  बोली हाथ पकड़ कर ही चले | देवकी का खाली पेट और कितनी लातें सह पता उसने उसे गोदी से उतर दिया और उसकी उंगलियाँ पकड़ कर भीड़ में चलने लगी|
पर वह चल कहाँ रही थी उसे तो लगभग मनसुख ही खींचे लिए जा रहा था | अचानक नाचते - नाचते एक बाराती का पैर फिसला और वह धड़ाम से सड़क पर गिर पड़ा | पूरी भीड़ सकपका गई , बैंड की तेज़ धुन और सभी के थिरकते पांव थम गए | सारा माहौल सन्नाटे में तब्दील हो गया पर इस गिरने की बात पर मनसुखा को बड़ा ही मजा आया , वह माई की उंगली छुड़ा कर दोनों हथेलियों को जोड़कर जोर - जोर से ताली पीट कर हंसने लगा | दुल्हे के छोटे राजपूताने भाई को यह बेहूदगी जरा भी नहीं भायी , उसे क्रोध आ गया और उसके होश उड़ गए ...... उसने आव देखा न ताव बन्दूक की नली मनसुखा के पेट पर लगा कर दाग दी गोली | मनसुख की हंसी गले में ही घुट कर रह गई और वह जमीन पर लुढ़क गया | देवकी की चीख गले ही में फंसी रह गई | वह हतबुद्ध सी थोड़ी देर वैसी ही खड़ी रह गई | फिर झुक कर मृत मनसुख की देह को गोदी में भर लिया , उसने विस्फारित दृष्टि से मनसुख के पेट की तरफ देखा .........देखा जिस रास्ते से गोली पेट के भीतर धंसी थी उसी रास्ते से अंतड़ियाँ खून से साथ बाहर आ रही थी | देवकी की अंतरात्मा ने कहा ....." हे ईश्वर ..... इसी पेट की अंतड़ियों ने इसे आज यहाँ तक पहुंचा दिया |" सारे बारातियों में एक सन्नाटा पसरा पड़ा था | वह देह लिए किनारे हो खड़ी रही अवाक् सी | बारात थोड़ी दूर तक चुपचाप चलती रही जैसे ही उन्होंने सौ - पचास कदम की दूरी तय की और एक मोड़ से मुड़ते ही उनके बैंड की धुन फिर बज उठी और उसी तेज़ धुन पर बाराती झूम उठे |

                                                                                                                                                             -----मीता दास 
  उम्र से बड़ी भूख  

                   रेलवे क्रोसिंग पर टू - व्हीलर ,ऑटो ,मिनी बस ,और कारों की
 
लम्बी कतार इस भीड़ से बचता - बचाता एक आठ - दस 
​साल
 का लड़का मैले - कुचैले कपड़ो में अखबार बेच रहा था | डेढ़ रुपये में 
​ ​
न्यूज़ पेपर ....वह लहरा - लहरा कर पेपर बेच रहा था | पर काफी मशक्कत के 
​बाद ​
 भी उसका एक भी पेपर नही बिका , मै गौर से उसे देख रही थी | किसी ने फिकरा कसा --- "पैदाकर के रास्ते, पर छोड़ देते हैं मरने
"  
"बाबू  भीख नहीं मांग रहा हूँ , अख़बार खरीद लो "
  ​.................
 " एक मुझे देना " मैंने सोचा एक और अख़बार रख लूं ,कारण कल मेरे सम्मान समारोह के फोटो आज के अखबार में छपा था पर
 
उसकी एक ही कॉपी है...लोगों को 
दिखाते - दिखाते कहीं फट ना
 
जाये | इसी के चलते 
एक और खरीदना चाहती  थी | मैंने पांच का नोट पकडाया तभी क्रोसिंग खुलने का 
सायरन बजने लगा मैंने 
जल्दबाजी में अखबार लिया और कहा
 
बाकि के पैसे वह रख ले और पेट भर कुछ 
 ​खा​
 ले | क्रोसिंग खुल गई
 और मै अखबार ले घर आ गई | चाय का कप ले कर अखबार उठाकर
 ​
पेज पलटने लगी , देखा खबरें इसमे कुछ 
अलग - अलग से हैं ....... मैंने पूरा अखबार देख डाला .....मेरी फोटो कही नहीं थी
 
ना ही कोई समाचार , फिर 
मेरी नजर अखबार के पहले पन्ने पर
 
गई देखा अखबार चार दिन पुराना था  |लड़का मुझे बना गया था | मै सोच में पड़ गई की भूख बड़ी थी
 
उसकी  
​उम्र .....
...नहीं
 ​ ..........
  ​
नहीं......  उम्र बड़ी थी  भूख की |
                               
                                                                                                                                                                                    ---- मीता दास