Thursday, July 28, 2016

Talking Writing-Mahasweta Devi

Mahasweta Devi, eminent writer and social activist, dies

Mahasweta Devi was an Indian social activist and writer.
Born: January 14, 1926 (age 90), Dhaka, Bangladesh
Spouse: Bijon Bhattacharya (m. ?–1959)
Children: Nabarun Bhattacharya
Uncles: Ritwik Ghatak, Sankha Chaudhury, more
Movies: Gangor, Rudaali, Hazaar Chaurasi Ki Maa, Sunghursh, A Grave-keeper's Tale, Gudia
Books

Talking Writing-Mahasweta Devi

महाश्वेता देवी का निधन। ‪#‎श्रद्धांजलि‬

जन्म: १४ जनवरी १९२६,अविभाजित भारत के ढाका
महाश्वेता देवी एक बांग्ला साहित्यकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं। इन्हें 1996 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। महाश्वेता देवी का नाम ध्यान में आते ही उनकी कई-कई छवियां आंखों के सामने प्रकट हो जाती हैं। दरअसल उन्होंने मेहनत व ईमानदारी के बलबूते अपने व्यक्तित्व को निखारा है। उन्होंने अपने को एक पत्रकार, लेखक, साहित्यकार और आंदोलनधर्मी के रूप में विकसित किया। महाश्वेता देवी का जन्म सोमवार १४ जनवरी १९२६ को अविभाजित भारत के ढाका में हुआ था। आपके पिता मनीष घटक एक कवि और एक उपन्यासकार थे और आपकी माता धारीत्री देवी भी एक लेखकिका और एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं। आपकी स्कूली शिक्षा ढाका में हुई। भारत विभाजन के समय किशोरवस्था में ही आपका परिवार पश्चिम बंगाल में आकर बस गया। बाद में आपने विश्वभारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन से बी.ए.(Hons) अंग्रेजी में किया और फिर कोलकाता विश्वविद्यालय में एम.ए. अंग्रेजी में किया। कोलकाता विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में मास्टर की डिग्री प्राप्त करने के बाद एक शिक्षक और पत्रकार के रूप में आपने अपना जीवन शुरू किया। तदुपरांत आपने कलकत्ता विश्वविद्यालय में अंग्रेजी व्याख्याता के रूप में नौकरी भी की। तदपश्चात 1984 में लेखन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए आपने सेवानिवृत्त ले ली।
महाश्वेता जी ने कम उम्र में लेखन का शुरू किया और विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं के लिए लघु कथाओं का महत्वपूर्ण योगदान दिया। आपकी पहली उपन्यास, "नाती", 1957 में अपनी कृतियों में प्रकाशित किया गया था ‘झाँसी की रानी’ महाश्वेता देवी की प्रथम रचना है। जो 1956 में प्रकाशन में आया। स्वयं उन्हीं के शब्दों में, "इसको लिखने के बाद मैं समझ पाई कि मैं एक कथाकार बनूँगी।" इस पुस्तक को महाश्वेता जी ने कलकत्ता में बैठकर नहीं बल्कि सागर, जबलपुर, पूना, इंदौर, ललितपुर के जंगलों, झाँसी ग्वालियर, कालपी में घटित तमाम घटनाओं यानी 1857-58 में इतिहास के मंच पर जो हुआ उस सबके साथ-साथ चलते हुए लिखा। अपनी नायिका के अलावा लेखिका ने क्रांति के तमाम अग्रदूतों और यहाँ तक कि अंग्रेज अफसर तक के साथ न्याय करने का प्रयास किया है। आप बताती हैं कि "पहले मेरी मूल विधा कविता थी, अब कहानी और उपन्यास है।" उनकी कुछ महत्वपूर्ण कृतियों में 'अग्निगर्भ' 'जंगल के दावेदार' और '1084 की मां', माहेश्वर, ग्राम बांग्ला हैं। पिछले चालीस वर्षों में, आपकी छोटी-छोटी कहानियों के बीस संग्रह प्रकाशित किये जा चुके हैं और सौ उपन्यासों के करीब (सभी बंगला भाषा में) प्रकाशित हो चुके हैं।

Sunday, July 3, 2016

Nabarun Bhattacharya

००००० शिशुओं को सिर्फ ०००००  


                                 अनुवाद : ---- मीता दास 

         
        मूर्ख ! कोई आस्था ही नहीं रही मंत्रियों के आश्वासनों में 
        शिशुओं को सिर्फ मरना ही भाता है 


        इकठ्ठा हो चुके है दूध की खाली बोतलें , सस्ते झुनझुने 
        नजर न लगने वाले काजल के टीके अब किस माथे पर धरोगे { आंजोगे } तुम 
        झूले एकाकी ही झूल रहे हैं रात के महा आकाश में 
        शिशुओं को तो सिर्फ मरना ही भाता है 


        अभी - अभी तो उस दिन आये थे { जन्मे थे } , इतनी जल्दी क्या थी उन्हें जाने की 
        मुंह - जूठन के अल्प खर्च बचाने की खातिर 
        छिप जाते मिटटी के नीचे फूल खिलाने की खातिर घास में
        शिशुओं को सिर्फ मरना ही भाता है 


        मूर्ख ! कोई आस्था ही नहीं बची मंत्रियों के आश्वासनों में 
        शिशुओं को सिर्फ मरना ही भाता है 
        शिशुओं को तो सिर्फ मरना ही भाता है । 

                             ०००००००

Ei Mrittu Upotokka Amar Desh nah.wmv