००००० शिशुओं को सिर्फ ०००००
अनुवाद : ---- मीता दास
मूर्ख ! कोई आस्था ही नहीं रही मंत्रियों के आश्वासनों में
शिशुओं को सिर्फ मरना ही भाता है
इकठ्ठा हो चुके है दूध की खाली बोतलें , सस्ते झुनझुने
नजर न लगने वाले काजल के टीके अब किस माथे पर धरोगे { आंजोगे } तुम
झूले एकाकी ही झूल रहे हैं रात के महा आकाश में
शिशुओं को तो सिर्फ मरना ही भाता है
अभी - अभी तो उस दिन आये थे { जन्मे थे } , इतनी जल्दी क्या थी उन्हें जाने की
मुंह - जूठन के अल्प खर्च बचाने की खातिर
छिप जाते मिटटी के नीचे फूल खिलाने की खातिर घास में
शिशुओं को सिर्फ मरना ही भाता है
मूर्ख ! कोई आस्था ही नहीं बची मंत्रियों के आश्वासनों में
शिशुओं को सिर्फ मरना ही भाता है
शिशुओं को तो सिर्फ मरना ही भाता है ।
०००००००
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