Sunday, July 3, 2016

Nabarun Bhattacharya

००००० शिशुओं को सिर्फ ०००००  


                                 अनुवाद : ---- मीता दास 

         
        मूर्ख ! कोई आस्था ही नहीं रही मंत्रियों के आश्वासनों में 
        शिशुओं को सिर्फ मरना ही भाता है 


        इकठ्ठा हो चुके है दूध की खाली बोतलें , सस्ते झुनझुने 
        नजर न लगने वाले काजल के टीके अब किस माथे पर धरोगे { आंजोगे } तुम 
        झूले एकाकी ही झूल रहे हैं रात के महा आकाश में 
        शिशुओं को तो सिर्फ मरना ही भाता है 


        अभी - अभी तो उस दिन आये थे { जन्मे थे } , इतनी जल्दी क्या थी उन्हें जाने की 
        मुंह - जूठन के अल्प खर्च बचाने की खातिर 
        छिप जाते मिटटी के नीचे फूल खिलाने की खातिर घास में
        शिशुओं को सिर्फ मरना ही भाता है 


        मूर्ख ! कोई आस्था ही नहीं बची मंत्रियों के आश्वासनों में 
        शिशुओं को सिर्फ मरना ही भाता है 
        शिशुओं को तो सिर्फ मरना ही भाता है । 

                             ०००००००

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